भगवान की भक्ति कितने प्रकार की होती है जानिए

आज की तेज रफ्तार जिंदगी में हर किसी के पास घंटों मंदिर में बैठकर पूजन, हवन या यज्ञ करने का समय नहीं है, न ही कोई रोज तीर्थ दर्शन कर सकता है। फिर भगवान की भक्ति कैसे की जाए? क्या आपको पता है कि भक्ति के नौ तरीके होते हैं, आध्यात्म की भाषा में इसे नवधा भक्ति कहते हैं। इसमें भगवान को याद करने या उपासना करने के नौ तरीके दिए गए हैं, जिससे आप बिना मंदिर जाए, बिना पूजा-पाठ और बिना तीर्थ दर्शन के भी कर सकते हैं।

शास्त्रों में भक्ति के नौ प्रकार बताए गए हैं जिसे नवधा भक्ति कहते हैं ?

श्रवणं कीर्तनं विष्णोः स्मरणं पादसेवनम् ।
अर्चनं वन्दनं दास्यं सख्यमात्मनिवेदनम् ॥
(…श्रीमद्भागवत)

 

१-श्रवण (परीक्षित), २-कीर्तन (शुकदेव),
३-स्मरण (प्रह्लाद),
४-पादसेवन (लक्ष्मी),
५-अर्चन (पृथुराजा),
६-वंदन (अक्रूर),
७-दास्य (हनुमान),
८-सख्य (अर्जुन), और
९-आत्मनिवेदन (बलि राजा) – इन्हें नवधा भक्ति कहते हैं।


श्रवण:- ईश्वर की लीला, कथा, महत्व, शक्ति, स्त्रोत्र इत्यादि को परम श्रद्धा सहित अतृप्त मन से निरंतर सुनना।
कीर्तन:- ईश्वर के गुण, चरित्र, नाम, पराक्रम आदि का आनंद एवं उत्साह के साथ कीर्तन करना।
स्मरण– निरंतर अनन्य भाव से परमेश्वर का स्मरण करना, उनके महात्म्य और शक्ति का स्मरण कर उस पर मुग्ध होना।
पाद सेवन:- ईश्वर के चरणों का आश्रय लेना और उन्हीं को अपना सर्वस्य समझना।
अर्चन: मन, वचन और कर्म द्वारा पवित्र सामग्री से ईश्वर के चरणों का पूजन करना।
वंदन:- भगवान की मूर्ति को अथवा भगवान के अंश रूप में व्याप्त भक्तजन, आचार्य, ब्राह्मण, गुरूजन, माता-पिता आदि को परम आदर सत्कार के साथ पवित्र भाव से नमस्कार करना या उनकी सेवा करना।
दास्य:- ईश्वर को स्वामी और अपने को दास समझकर परम श्रद्धा के साथ सेवा करना।
सख्य:- ईश्वर को ही अपना परम मित्र समझकर अपना सर्वस्व उसे समर्पण कर देना तथा सच्चे भाव से अपने पाप पुण्य का निवेदन करना।
आत्म निवेदन:- अपने आपको भगवान के चरणों में सदा के लिए समर्पण कर देना और कुछ भी अपनी स्वतंत्र सत्ता न रखना। यह भक्ति की सबसे उत्तम अवस्था मानी गई हैं। 

नवधा भक्ति :- भगवान को पाने के नौ आसान रास्ते:-