वेदव्यास जी ने क्यों लिखी श्रीमद् भागवत कथा
सृष्टि के आरंभ से कलियुग तक की कथा है भागवत श्रीमद् भागवत पुराण वैष्णव संप्रदाय सहित अन्य संप्रदायों के लिए सर्वश्रेष्ठ ग्रंथ है। इसमें भगवान विष्णु के विभिन्न प्रमुख 24 अवतारों का वर्णन है, किंतु श्री कृष्ण चरित्र इसमें प्रधान माना जाता है।
श्रीमद्भागवत की रचना महर्षि कृष्णद्वैपायन व्यास (वेद व्यास) ने ब्रह्मर्षि नारद की प्रेरणा से की।क्यों लिखी - कथा प्रचलित है कि महाभारत जैसे महाग्रंथ की रचना के बाद भी वेद व्यास संतुष्ट और प्रसन्न नहीं थे, उनके मन में एक खिन्नता का भाव था। तब श्री नारद ने वेद व्यास को प्रेरणा दी कि वे एक ऐसे ग्रंथ ही रचना करें जिसके केंद्र में भगवान विष्णु हों। इसके बाद वेद व्यास ने इस ग्रंथ की रचना की। श्रीमद् भागवत के 12 स्कंध हैं तथा 18 हजार श्लोक हैं। भारतीय पुराण साहित्य में श्रीमद् भागवत को समस्त श्रुतियों का सार, महाभारत का तात्पर्य निर्णायक तथा ब्रह्म सूत्रों का भाष्य कहा जाता है।इसमें सृष्टि की रचना से लेकर कलियुग यानी सृष्टि के विनाश तक की कहानी है। इसमें भगवान के अवतारों की कथाओं के जरिए जीवन में कर्म और अन्य शिक्षाओं को पिरोया गया है। भागवत व्यवहारिक और गृहस्थ्य जीवन का ग्रंथ है। इसमें आम जीवन में उपयोगी कई बातों को गूढ़ कथाओं में समझाया गया है। श्री वेद व्यास के पुत्र शुकदेव को इस कथा श्रेष्ठ कथाकार माना गया है। वे इस कथा का संपूर्ण मर्म जानते थे। उन्होंने ही इसे आमजनों में प्रचारित किया।
क्या है भागवत के 12 स्कंधों में
भागवत 12 स्कंधों में बंटी है, इन स्कंधों में कई अध्याय है। ग्रंथ का प्रारंभ भागवत माहात्म से होता है। जिसमें देवर्षि नारद की भक्ति से भेंट होती है, भक्ति के दोनों पुत्र ज्ञान और वैराग्य वृद्धावस्था और कमजोरी की हालत में होते हैं। नारद उन्हें इसका उपचार बताते हैं। इसके बाद गोकर्ण और धुंधुकारी की कथा है।
प्रथम स्कंध कथा
इसमें अवतार वर्णन, महाभारत युद्ध के पश्चात की कथा, परीक्षित श्राप व शुकदेव आगमन है। भगवान की सभी लीलाओं का संक्षिप्त वर्णन, अश्वत्थामा द्वारा द्रोपदी के पांच पुत्रों को मारना, अर्जुन और अश्वत्थामा का युद्ध, उत्तरा के गर्भ की रक्षा, भीष्म का प्राण त्याग, कृष्ण के महाप्रयाण के बाद अर्जुन का लौटना और पांडवों का स्वर्गारोहण। पात्र : श्रीकृष्ण, सूतजी, शौनकादि ऋषि, अश्वत्थामा, पांडव, द्रोपदी, विदूर आदि।
द्वितीय स्कंध कथा
इसमें शुकदेव द्वारा कथारंभ है, जिसमें सृष्टि आरंभ का वर्णन है। भगवान के स्थूल और सूक्ष्म रूपों का वर्णन, भगवान के विराट स्वरूप की कथा, भागवत के दस लक्षण। पात्र : शुकदेव, विदूर, मैत्रेयी, परीक्षित आदि।
तृतीय स्कंध कथा
सृष्टि विस्तार, सांख्य तत्व उत्पत्ति, योग विषयक, उद्धव और विदूर की वार्ता, विराट शरीर की उत्पत्ति, ब्रह्माजी की उत्पत्ति, वाराह अवतार कथा, दिति का गर्भधारण, जय-विजय को सनकादिक ऋषि का शाप, हिरण्यकक्षिपु और हिरण्याक्ष का जन्म, दिग्विजय, वध, देवहुति और कर्दम ऋषि का विवाह आदि प्रसंग। पात्र - विदूर, उद्धव, मैत्रेयी, जय-विजय, भगवान विष्णु, ब्रह्मा, हिरयणकक्षिपु, हिरण्याक्ष आदि।
चतुर्थ स्कंध कथा
शिव कथा, स्वायम्भुव मनु की पुत्रियों का वंश वर्णन, ध्रुव की कथा, राजा वेन और पृथु की कथा, पृथ्वी का दोहन, राजा पुरंजय की कथा, प्रचेता कथा। पात्र : भगवान शिव, सति, प्रजापति दक्ष, धु्रव, राजा वेन, पृथु, पृथ्वी, पुरंजय, प्रचेता आदि।
पंचम स्कंधकथा
ऋषभदेव चरित्र, भरत चरित्र, भुवनकोश का वर्णन, गंगा का वर्णन, शिशुमारचक्र का वर्ण, राहु आदि का वर्णन, अन्यान्य लोको का वर्णन। पात्र : राजा प्रियव्रत, आग्रिध, नाभि, ऋषभदेव, भरत, जड़भरत, रहूगण, शिव, संकर्षण और राहु।
षष्ठ स्कंधकथा
प्रजापति वंश वर्णन, इंद्र ब्रह्म हत्या, अजामिल की कथा, दक्षपुत्रों की कथा, विश्वरूप का वर्णन, वृत्रासुर का वध, चित्रकेतु का वैराग्य, अदिति और दिति की संतानों का वर्णन। पात्र : दक्ष, नारद, विष्णु, चित्रकेतु, अजामिल, वृत्रासुर, कश्यप, अदिति-दिति आदि।
सप्तम स्कंधकथा
प्रह्लाद चरित्र, नरसिंह अवतार, हिरण्यकशिपु का वध, मानव, राजधम और स्त्रीधर्म का निरुपण, गृहस्थों के लिए मोक्षधर्म का वर्णन। पात्र - नारद, युधिष्ठिर, जय-विजय, हिरण्यकशिपु, नरसिंह, आदि।
अष्टम स्कंध कथा
प्रमुख रूप से देवासुर संग्राम कथा, मनवंतरों का वर्णन, समुद्रमंथन, मोहिनी अवतार की कथा, राजा बलि की स्वर्ग पर विजय, वामन अवतार की कथा। पात्र : ब्रह्मा, विष्णु, शिव, इंद्र, बलि, बृहस्पति, मनु, कश्यप, अदिति आदि।
नवम् स्कंध कथा
मनुवंश की कथा, सूर्यवंश, श्रीराम लीला, भगीरथ का तप से गंगा को पृथ्वी पर लाना, परशुराम द्वारा क्षत्रियों का संहार, ययाति चरित्र आदि। पात्र : वैवस्तव मनु, नाभाग, अंबरीष, भगीरथ, सगर, निमि, ऋचिक, जमदग्रि, परशुराम, दशरथ, श्रीराम आदि।
दशम स्कंध कथा
वसुदेव देवकी का विवाह, कंस द्वारा बंदी बनाया जाना, श्रीकृष्ण जन्म, ब्रज में श्रीकृष्ण की बाललीलाएं, असुरों का वध, कंस वध, श्रीकृष्ण की शिक्षा, विवाह, पांडवों की कथा, पांडवों को वनवास, कौरवों की हठ, महाभारत युद्ध, गीता उपदेश। पात्र : श्रीकृष्ण, वसुदेव, देवकी, बलराम, नंद, यशोदा, कंस, अक्रूर, उद्धव, गोप-गोपियां, पांडव, कौरव आदि।
एकादश स्कंधकथा
अवधूत उपाख्यान, सांख्य क्रिया योग, विभिन्न आश्रमों पर उपदेश हैं।पात्र : राजा जनक, नारद, वसुदेव, श्रीकृष्ण आदि।
द्वादश स्कंधकथा
कलियुग धर्म, वंशावली व भागवत माहात्म का वर्णन है।
यह सीखें भागवत से
श्रीमद् भागवत से प्राप्त भक्ति, ज्ञान और वैराग्य जीवन में बदलाव लाते हैं। मनुष्य अधर्म अर्थात गलत कार्यों को छोड़कर धर्म के अर्थात अच्छाई के मार्ग पर चलता है।
- जब मनुष्य प्रत्येक वस्तु या प्राणी में ईश्वर को देखता है तो अन्याय, अनीति, अत्याचार और अपमान करने से बचता है। उसमें दया और सद्भाव के गुण आते हैं।
- माया-मोह, लोभ, मद और वासना जैसी बुराइयों से मुक्त हो जाता है।
- आज जब सारे संसार में आपसी द्वेष और स्वार्थ का युद्ध छिड़ा हुआ है, ऐसे में श्रीमद् भागवत ही संपूर्ण विश्व को मानवता, सद्भाव और संवेदनशीलता का संदेश दे सकती है।
- श्रीमद् भागवत केवल मानव-मानव के बीच ही नहीं प्राणीमात्र के प्रति हमें सहिष्णु बनाती है, वहीं प्रकृति और मनुष्य के बीच भी समन्वय स्थापित करती है।
- आवश्यकता इस बात की है कि हम श्रीमद् भागवत को आज के संदर्भ में समझें और जन-जन को इसके संदेश से परिचित कराएं।
युवाओं का ग्रंथ है श्रीमद्भागवत..!
युवाओं की यह सोच है कि धर्म ग्रंथ बुढ़ापे में पढ़ने के लिए होते हैं। श्रीमद्भागवत जैसे ग्रंथ को भी युवा नहीं पढ़ते हैं, इसे भी वृद्धावस्था में समय काटने का साधन मानते हैं लेकिन सच यह है कि यह ग्रंथ केवल युवाओं के लिए है। यह युवा अवस्था की ही कहानी है और इसमें जीवन प्रबंधन के जो फंडे हैं वे भी युवाओं के लिए हैं, जीवन के उपयोगी सूत्र हैं। आप जानते हैं महात्मा गांधी ने अपनी युवा अवस्था में इस ग्रंथ को पढ़ा था और उसके बाद ही उनके जीवन में वह बदलाव आया, जिसने उन्हें बेरिस्टर मोहनदास गांधी से महात्मा गांधी बना दिया। इसमें जीवन प्रबंधन के गूढ़ रहस्य हैं, जिन्हें कई लेखक प्रेरित होकर जीवन प्रबंधन की अपनी किताबों में शामिल कर रहे हैं। आइए जानते हैं ऐसा क्या है श्रीमद्भागवत में..।
वास्तव में भागवत पुराण भगवान विष्णु के अवतारों की कहानी है। भगवान के चौबीस अवतारों का वर्णन है, जिसमें भगवान ने जीवन में सफलता के सूत्र स्थापित किए हैं। महर्षि वेद व्यास ने इसकी रचना करते समय युवाओं को ही ध्यान में रखा, इसलिए इस पूरे ग्रंथ के सूत्रधार दो युवा ही हैं। पहले हैं राजा परीक्षित जिन्होंने यह कथा सुनी और दूसरे हैं वेद व्यास के 16 वर्षीय पुत्र शुकदेव जिन्होंने राजा परीक्षित को यह कथा सुनाई। इस ग्रंथ की विशेषता यह है कि इसमें जितनी भी कहानियां हैं, अधिकांश युवाओं की है जिन्होंने अपने युवा जीवन में अद्भुत कर्म किए। इसमें वृद्धावस्था का वर्णन बहुत थोड़ा है, सारे युवा राजाओं, भगवान के अवतारों की ही कथा है। जिनके जरिए यह संदेश दिया गया है कि अगर मनुष्य अपने लक्ष्य को जल्द ही पहचान ले तो वह बहुत कम समय में कैसे अधिक सफलता हासिल कर सकता है और जीवन के सारे सुख भोग सकता है। यह ग्रंथ युवा अवस्था के ऐसे डर को दूर करता है जो अमूमन हर व्यक्ति के जीवन में होते हैं। अगर आपके जीवन में भी ऐसे कोई डर हों, सही रास्ता नहीं सूझता हो, मन में अशांति रहती हो तो श्रीमद्भागवत का पाठ करें और इसमें छिपे सफलता के सूत्रों को समझने का प्रयास करें, आपको खुद के भीतर ही परिवर्तन महसूस होने लगेगा
यहां से शुरू होती है भागवत
श्रीमद्भागवत महापुराण की शुरुआत महात्म्य से होती है। ऐसी मान्यता है कि हर ग्रंथ के पाठ से पहले उसके महात्म्य की बात की जाती है। महात्म्य का अर्थ होता है महत्व, कुछ विद्वान इसका अर्थ महानता से भी लेते हैं। श्रीमद् भागवत में महात्म्य के छह अध्यान हैं। इसमें मुख्य पात्र सूतजी, शौनक आदि ऋषि, व्यास, नारद, शुकदेव, धुंधकारी व गोकर्ण है।
भागवत में कुल 12 स्कंध हैं। माहात्म्य इनके अतिरिक्त है। माहात्म्य सबसे पहले बताया गया है। छह छोटे अध्यायों में बंटे माहात्म्य की कथा नारद की भक्ति से भेंट के साथ शुरू होती है। नारद पृथ्वी पर आते हैं और कलियुग में पृथ्वी की दुर्दशा देखकर दु:खी होते हैं। तब यमुना के तट पर उन्हें एक स्त्री दिखाई देती है। पूछने पर पता चलता है वह भक्ति है। उसके साथ दो पुत्र भी मिलते हैं जो थके हुए हैं। एक ज्ञान है दूसरा वैराग्य। भक्ति के निवेदन पर नारद दोनों पुत्रों को नींद से जगाते हैं और उनकी थकान दूर करते हैं। कलियुग में धर्म की स्थापना के लिए भक्ति, ज्ञान और वैराग्य को भागवत का माहात्म्य बताया जाता है और तीनों संतुष्ट होते हैं।
इसी के साथ माहात्म्य की कथा आगे बढ़ती है। इसी में आत्मदेव का प्रसंग है। आत्मदेव एक ब्राह्मण था। उसकी पत्नी धुंधुलि झगड़ालु थी। दोनों नि:संतान थे। एक दिन संतान न होने पर द़ु:खी आत्मदेव को एक संन्यासी मिला। संन्यासी ने आत्मदेव को एक फल दिया और कहा कि इसे पत्नी को खिलाना, तब पुत्र की प्राप्ति होगी। आत्मदेव ने फल अपनी पत्नी धुंधुलि को दिया लेकिन धुंधुलि ने फल खुद न खाते हुए अपनी बहन को दे दिया। बहिन पहले से गर्भवती थी। उसने वह फल गाय को खिला दिया। कुछ समय बाद बहिन को पुत्र हुआ और उसने वह पुत्र अपनी बहिन धुंधुलि को दे दिया। आत्मदेव और धुंधुलि के इस पुत्र का नाम धुंधुकारी रखा गया। इधर जिस गाय को संन्यासी का दिया फल खिलाया गया था उसने भी मनुष्य रूप में एक शिशु को जन्म दिया। इसका नाम गोकर्ण रखा गया।
दोनों बालक धुंधुकारी और गोकर्ण साथ पले-बढ़े। गोकर्ण ज्ञानी हुआ तो धुंधुकारी दुष्ट निकला। धुंधुकारी ने बुरी संगत में पड़कर पिता की सारी संपत्ति नष्ट कर दी। उसके ऐसे आचरण से दु:खी पिता आत्मदेव को दूसरे पुत्र गोकर्ण ने समझाइश दी और आत्मदेव मोह त्यागकर वन में चले गए। इधर धुंधुकारी ने अपनी मां को पीटना शुरू किया। वह पांच वेश्याओं के चक्कर में पड़ गया। वेश्याओं ने उससे धन व आभूषण मांगे और नहीं देने पर उसकी हत्या कर दी। धुंधुकारी प्रेत बना। कुछ समय बाद गोकर्ण की अपने प्रेत बने भाई से मुलाकात हुई। तब गोकर्ण ने अपने प्रेत भाई धुंधुकारी को भागवत की कथा सुनाई और उसकी मुक्ति हुई। इस तरह भागवत के इस माहात्म्य के स्कंध में गोकर्ण और धुंधुकारी की कथा के माध्यम से भागवत सुनने के फायदे बताए गए हैं। धुंधुकारी जिन पांच वेश्याओं के चक्कर में थे वे प्रतीक रूप में इंद्रियां हैं। इंद्रियों के वश में पड़े धुंधुकारी का नाश हुआ और वह अकाल मृत्यु मर कर प्रेत बना। उसी का भाई गोकर्ण ज्ञानी हुआ और भागवत सुनाकर उसने अपने प्रेत भाई को मुक्त किया।
कौन हैं सूतजी और वेद व्यास
सूतजी- पुराणों में सूतजी को परम ज्ञानी ऋषि कहा गया है। वे भागवत की कथा सुनाते हैं। कथा सुनने वालों में शौनक सहित 84 हजार ऋषि शामिल हैं। शौनक- ये भी ऋषि हैं। जिज्ञासु और भागवत कथा के रसिक हैं। वे सूतजी से कथा सुनते हैं। वेद व्यास- ये विष्णु के अंशावतार माने गए हैं। उन्होंने ब्रह्मासूत्र, महाभारत के अलावा भागवत सहित 18 पुराण लिखे। इन्होंने ही वेदों का विभाजन किया। इसलिए इन्हें वेद व्यास कहा जाता है |
जवान मां के बूढ़े बच्चे हैं ये
यह सुनने में अजीब लगता है लेकिन सत्य है। श्रीमद् भागवत महापुराण की कथा यहीं से शुरू होती है। ये कथा भागवत का महात्म्य है। हर ग्रंथ के शुरुआत में उसका महात्म्य होता है। भागवत के इसी महात्म्य में यह कथा है, जब नारद मृत्युलोक यानी पृथ्वी पर भ्रमण करते हैं और उन्हें एक युवती रोती दिखाई देती है। उसकी गोद में सिर रख दो बूढ़े पुरुष सो रहे हैं, दोनों बहुत कमजोर और बीमार दिखाई दे रहे हैं। जब नारद उस युवती से पूछते हैं तो वह बताती है कि दोनों बूढ़े पुरुष उसके पुत्र हैं। यह सुनकर नारद को बड़ा आश्चर्य होता है, एक जवान स्त्री के बच्चे इतने बूढ़े कैसे हो सकते हैं।
तब वह युवती बताती है कि वह भक्ति है और उसके दोनों बूढ़े पुत्र पहले स्वस्थ्य और जवान थे लेकिन कलियुग में उनकी यह दुर्दशा हो गई है। दोनों पुत्रों के नाम थे ज्ञान और वैराग्य। तब नारद भक्ति को श्रीमद् भागवत का श्रवण करने का उपाय बताते हैं, जिससे उसके बूढ़े बच्चे ज्ञान और वैराग्य फिर स्वस्थ्य और जवान हो गए। कथा यह बताती है कि कलियुग यानी आधुनिक युग में लोगों में भक्ति तो होगी लेकिन ज्ञान और वैराग्य का अभाव होगा। ज्ञान इसलिए नहीं होगा क्योंकि लोग धर्म शास्त्रों का अध्ययन करना छोड़ देंगे। ज्ञान नहीं होगा तो मन में वैराग्य का भाव नहीं आएगा। भक्ति अधूरी ही रहेगी, ज्ञान और वैराग्य के बिना। परम ज्ञान के लिए भागवत का अध्ययन सबसे श्रेष्ठ उपाय है। इससे हमें सारी सृष्टि का ज्ञान होता है और जीवन को नई दृष्टि मिलती है।
लक्ष्मी ने मांगा विष्णु को
भागवत में भगवान विष्णु के अवतार वामन और राजा बलि का प्रसंग आता है। दैत्यराज बलि दानवीर था। वह किसी को खाली हाथ नहीं जाने देता था। भगवान वामन ने राजा बलि से तीन पग जमीन मांगी। दानी बलि वामनदेव को तीन पग जमीन देने के लिए मान गए।
वामनदेव ने एक पग में स्वर्ग और दूसरे पग में पृथ्वी को नाप लिया। जब भगवान वामन ने दो ही पग में स्वर्ग और पृथ्वी नाप ली तो तीसरा पैर कहां रखे? इस बात को लेकर बलि के सामने संकट उत्पन्न हो गया। वचन के पक्के बलि अपना सिर भगवान के सामने कर दिया और कहा हे देव तीसरा पग आप मेंरे सिर पर रख दीजिए। भगवान वामन ने वैसा ही किया और पैर रखते ही बलि सुतल लोक में पहुंच गया।
बलि की उदारता से भगवान बहुत प्रसन्न हुए। उन्होंने उसे सुतल लोक का राजा बना दिया और वर मांगने के लिए कहा। बलि ने वर मांगा कि भगवान विष्णु आप मेरे द्वारपाल बनकर रहें। विष्णु ने उसे यह वर प्रदान किया और वे बलि के द्वारपाल बनकर रहने लगे। इससे विष्णुप्रिया लक्ष्मीजी चिंता में पड़ गईं कि अगर स्वामी सुतल लोक में द्वारपाल बन कर रहेंगे तब बैकुंठ लोक का क्या होगा? देवी लक्ष्मी ऐसा विचार कर ही रही थी कि देवर्षि नारद वहां आ गए। देवर्षि को देख लक्ष्मीजी ने उन्हें अपनी समस्या कह सुनाई। नारदजी ने कहा कि आप राजा बलि को अपना भाई बना लीजिए। लक्ष्मीजी ने वैसा ही करा और राजा बलि को रक्षासूत्र बांधकर भाई बना लिया। तब बलि ने बहन लक्ष्मी से वर मांगने के लिए कहा। लक्ष्मीजी ने तुरंत ही अपने स्वामी भगवान विष्णु को वर में मांग लिया। इस तरह देवी लक्ष्मी को भगवान विष्णु पुन: मिल गए।
श्रीहरि ने बचाए गजेंद्र के प्राण
भागवत के अनुसार तामस मन्वंतर में हरिमेधा ऋषि की पत्नी हरिणि के गर्भ से श्रीहरि के रूप में भगवान विष्णु ने अवतार लिया। इसी अवतार में उन्होंने मगरमच्छ से गजेन्द्र हाथी की रक्षा की।गजेंद्र एक हाथी था। गजेंद्र पूर्व जन्म में द्रविड़ देश का इन्द्रद्युम्र नाम का राजा था। जो कि भगवान का अनन्य भक्त था। भक्ति के वश होकर राजा ने सबकुछ छोड़कर पर एक पर्वत पर मौनव्रत धारण कर रहने लगा। पर्वत पर वह कठोर तप में लीन हो गया। एक दिन उनके पास महर्षि अगस्त्य आए परंतु इंद्रद्युम्र भगवान की भक्ति में इतने खोए थे कि उन्हें पता ही नहीं चला कि महर्षि अगस्त आए हैं। इसी कारण इन्द्रद्युम्र ने अगस्त मुनि की न आवभगत की और न ही उनके चरण-स्पर्श किए। तब अगस्त्य मुनि ने उनको हाथी बनने का शाप दे दिया था। इसी शाप के प्रभाव से इन्द्रद्युम्र अगले जन्म में गजेंद्र नाम का हाथी बना।
गजेंद्र हाथी अन्य हाथियों के साथ एक सरोवर में पानी पीने के लिए गया लेकिन पानी पीने के बाद वह सरोवर में साथी हाथियों के साथ जलक्रीड़ा करने लगा। इसी दौरान सरोवर में एक मगरमच्छ ने गजेंद्र का एक पैर पकड़ लिया। हाथी ने पहले तो खुद को बचाने के बहुत प्रयास किए परंतु उसके सारे प्रयास असफल हो गए। अब गंजेंद्र ने मृत्यु निश्चित मानकर भगवान का स्मरण आरंभ कर खुद को भगवान की शरण में छोड़ दिया। गजेंद्र को अपने पूर्वजन्म में की गई भगवान की आराधना का स्मरण था। उस समय गजेंद्र ने परमात्मा की जो प्रार्थना की वह गजेंद्र मोक्ष त के नाम से प्रसिद्ध हुई। गजेंद्र की प्रार्थना सुन कर भगवान विष्णु वहां आए और गजेंद्र को उस मगर से बचाया। विष्णु का यह अवतार श्रीहरि अवतार कहा गया है। भगवान श्रीहरि ने गजेंद्र के प्राणों की रक्षा की तथा मोक्ष प्रदान कर अपना पार्षद बनाया।
भक्ति सिखाती है भागवत
श्रीमद् भागवत कथा भक्ति, ज्ञान और वैराग्य को स्थापित करती है। नारदजी कहते हैं अनेक जन्मों के पुण्य इकट्ठे होते हैं तो सत्संग मिलता है जिससे मनुष्य का मोह-मद का अंधकार हट जाता है तथा विवेक का उदय होता है। भागवत में धुंधुकारी प्रसंग बताता है कि किस तरह मनुष्य वेश्यारूपी पांच इंद्रियों की इच्छाएं पूरी करने में जीवन नष्ट कर देता है और अंत में वह प्रेत बन जाता है, जिसे भागवत कथा सुनने के बाद मुक्ति मिलती है। भागवत के पहले स्कंध में प्रमुख रूप से कलियुग से प्रभावित राजा परीक्षित की मुक्ति का प्रसंग हमें संदेश देता है कि जीवन का मुख्य लक्ष्य जीवन-मरण के चक्कर से मुक्ति पाना है। जीवन का जो समय बचा है उसे इस दिशा में ले जाएं।
भागवत में स्कंध-दर-स्कंध आगे बढ़ती कथा के विभिन्न प्रसंगों के माध्यम से यही समझाया गया है कि इस संसार के पहले भी एकमात्र ईश्वर था और इस दिखाई देने वाले सारे संसार में वही ईश्वर है। जब यह संसार खत्म होगा तो यही ईश्वर शेष रह जाएगा। प्राणियों के शरीर के रूप में पंचभूत (आकाश, पृथ्वी, वायु, जल और अग्नि) ईश्वर हैं तो आत्मा के रूप में ईश्वर है। कहने का तात्पर्य यही है कि संपूर्ण संसार में एकमात्र ईश्वर ही है। ईश्वर ही वास्तविकता है। इसलिए हमें सभी में ईश्वर को ही देखना चाहिए। श्रीमद् भागवत हमें ईश्वर को समझने के लिए पहले भक्ति सिखाती है, फिर इसका ज्ञान देती है। भक्ति और ज्ञान से जब हम ईश्वर की सत्ता को समझ लेते हैं तो मन वैराग्य की ओर मुड़ जाता है। इस स्थिति में श्रीमद् भागवत हमें वास्तविक वैराग्य से परिचित कराती है।